Friday, June 21, 2013

S.L.E Systemic Lupus Erythematosus in Ayurveda (Hindi)

S.L.E Systemic Lupus Erythematosus को आयुर्वेद में वात व्याधि के अन्तर्गत माना जाता है।
आयुर्वेद में ८० प्रकार के वात रोग माने हे| इनमे यह S.L.E Systemic Lupus Erythematosus भी हमारे देश में बड़ी उम्र के लोगों के बीच है। 50 साल से अधिक उम्र के लोग यह मान कर चलते हैं कि अब तो यह होना ही था। खास तौर से स्त्रियां तो इसे लगभग सुनिश्चित मानती हैं। ऑर्थराइटिस का मतलब है जोड़ में जलन। यह शरीर के किसी एक जोड़ में भी हो सकता है और ज्यादा जोड़ों में भी। इस भयावह दर्द को बर्दाश्त करना इतना कठिन होता है कि रोगी का उठना-बैठना तक दुश्वार हो जाता है।
मरी़ज की कार्यक्षमता तो घट ही जाती है, उसका जीना ही लगभग दूभर हो जाता है। अकसर वह मोटापे का भी शिकार हो जाता है, क्योंकि चलने-फिरने से मजबूर होने के कारण अपने रो़जमर्रा के कार्यो को निपटाने के लिए भी दूसरे लोगों पर निर्भर हो जाता है। अधिकतर एक जगह पड़े रहने के कारण उसका मोटापा भी बढ़ता जाता है, जो कई और बीमारियों का भी कारण बन सकता है।
इसके लिए जि़म्मेदार होता है खानपान का असंतुलन,आयुर्वेद अनुसार भी यह मिथ्या आहार विहार से होता हे| इससे शरीर में यूरिक एसिड बढ़ता है। जब भी हम कोई ची़ज खाते या पीते हैं तो उसमें मौजूद एसिड का कुछ अंश शरीर में रह जाता है। खानपान और दिनचर्या नियमित तथा संतुलित न हो तो वह धीरे-धीरे इकट्ठा होता रहता है। जब तक एल्कली़ज शरीर के यूरिक एसिड को निष्कि्रय करते रहते हैं, तब तक तो मुश्किल नहीं होती, लेकिन जब किसी वजह से अतिरिक्त एसिड शरीर में छूटने लगता है तो यह जोड़ों के बीच हड्डियों या पेशियों पर जमा होने लगता है। यही बाद में ऑर्थराइटिस के रूप में सामने आता है। शोध के अनुसार 80 से भी ज्यादा बीमारियां अर्थराइटिस के लक्षण पैदा कर सकती हैं। इनमें शामिल हैं रिह्यमेटाइड ऑर्थराइटिस, ऑस्टियो ऑर्थराइटिस,गठिया, टीबी और दूसरे इऩफेक्शन। इसके अलावा ऑर्थराइटिस से पीडि़त व्यक्ति को रिह्यमेटाइड ऑर्थराइटिस, गठिया कमर दर्द की शिकायत हो सकती है। इनमें कई बार जोड़ों के बीच एसिड क्रिस्टल जमा होने लगते हैं। तब चलने-फिरने में चुभन और टीस होती है।

संकेत और लक्षण

हाथ का उपयोग करने के लिए या चलने में असमर्थता
अस्वस्थता और थकान का अहसास
बुखार
नींद कम आना
मांसपेशियों में दर्द और बदन दर्द
चलते समय कठिनाई होना
मांसपेशियों में कमजोरी
लचीलेपन की कमी
एरोबिक फिटनेस में कमी

रोग प्रमुख कारण

औरतों में एसट्रोजन की कमी के कारण भी अर्थराइटिस होता है।
थइराइड में विकार के कारण भी यह बीमारी होती है।
त्वचा या खून की बीमारी जैसे ल्यूकेमिया आदि होने पर भी जोड़ों में दोष पैदा हो जाता है।
अधिक खन-पान और शारीरिक कामों में कमी के कारण, शरीर में आयरन और कैल्शियम की अधिकता होने से भी यह रोग हो सकता है।
कई बार शरीर के दूसरे अंगों के संक्रमण भी जोड़ों को प्रभावित करते हैं जैसे टाइफायड या पैराटाइफायड में बीमारी के कुछ हफ़्तों बाद घुटनों आदि में दर्द हो सकता है।
आतों को प्रभावित करने वाले रिजाक्स नामक किटाणु जोड़ों में भी विकार पैदा करते हैं।
पोषण की कमी के कारण , खा़सतौर से बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से रिह्यूमेटायड आर्थराइटिस होता है जिससे जोड़ों में दर्द , सूजन गांठों में अकड़न आ जाती है।

आप सभी से मेरा अनुरोध है कि इस किसी एक लक्षण के होने पर कृपया करके आप तुरंत डा० से सम्पर्क करें , जिससे आप को यदि यह रोग हो रहा हो तो आरंभिक अवस्था में ही इससे छुटकारा मिल जाए।

बदलें जीने का ढंग --
इससे निपटने का एक ही उपाय है और वह है उचित समय पर उचित खानपान। इनकी बदौलत एसिड क्रिस्टल डिपॉ़जि़ट को गलाने और दर्द को कम करने में मदद मिलती है। इसलिए बेहतर होगा कि दूसरी ची़जों पर ध्यान देने के बजाय खानपान की उचित आदतों पर ध्यान दिया जाए, ताकि यह नौबत ही न आए, फिर भी ऑर्थराइटिस हो गया हो तो ऐसी जीवन शैली अपनाएं जो शरीर से टॉक्सिक एसिड के अवयवों को खत्म कर दे।

इसके लिए यह करें-
एसिड फ्री भोजन करें और शरीर में एसिड को जमने से रोकें।
शरीर से एसिड का स़फाया करने वाले ज़रूरी पोषक तत्वों को शरीर में रोकने की कोशिश करें, जिससे एसिड शरीर में ही जल जाए।

खानपान का रखें ख्‍याल
इससे निपटने के लिए जरूरी है ऐसा भोजन जो यूरिक एसिड को न्यूट्रल कर दे। ऐसे तत्व हमें रो़जाना के भोजन से प्राप्त हो सकते हैं। इसके लिए विटमिन सी व ई और बीटा कैरोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थो का इस्तेमाल किया जाना चहिए। इसके अलावा इन बातों पर भी ध्यान दें -
ऐसी ची़जें खाएं जिनमें वसा कम से कम हो। कुछ ऐसी ची़जें भी होती हैं जिनमें वसा होता तो है लेकिन दिखता नहीं, जैसे- केक, बिस्किट, चॉकलेट, पेस्ट्री से भी बचें। दूध लो फैट पिएं। योगर्ट और ची़ज आदि भी अगर ले रहे हों तो यह ध्यान रखें कि वह लो फैट ही हो।
ची़जों को तलने के बजाय भुन कर खाएं। कभी कोई ची़ज तल कर ही खानी हो तो उसे जैतून के तेल में तलें। चोकर वाले आटे की रोटियों, अन्य अनाज, फलों और सब्जियों का इस्तेमाल करें।
चीनी का प्रयोग कम से कम करें।

• अपने आहार में 25 प्रतिशत फल व सब्जि़यों को शामिल करें और ध्यान रखें कि आपको कब्ज़ ना हो।
• फलों में सन्तरे, मौसमी, केले, सेब, नाश्पाती, नारियल, तरबूज़ और खरबूज़ आपके लिए अच्छे हो सकते हैं।
• सब्जि़यों में मूली, गाज़र, मेथी, खीरा, ककड़ी आपके आदि लें।
• चोकरयुक्त आटे का प्रयोग करें क्योंकि इसमें फाइबर अधिक मात्रा में होता है ।

१) सबसे जरूरी और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मौसम के मुताबिक ३ से ६ लिटर पानी पीने की आदत डालें। ज्यादा पेशाब होगा और अधिक से अधिक विजातीय पदार्थ और यूरिक एसीड बाहर निकलते रहेंगे।
२) आलू का रस १०० मिलि भोजन के पूर्व लेना हितकर है।
३) संतरे के रस में १५ मिलि काड लिवर आईल मिलाकर शयन से पूर्व लेने से गठिया में आश्चर्यजनक लाभ होता है।
४) लहसुन,गिलोय,देवदारू,सौंठ,अरंड की जड ये पांचों पदार्थ ५०-५० ग्राम लें।इनको कूट-खांड कर शीशी में भर लें। २ चम्मच की मात्रा में एक गिलास पानी में डालकर ऊबालें ,जब आधा रह जाए तो उतारकर छान लें और ठंडा होने पर पीलें। ऐसा सुबह=शाम करने से गठिया में अवश्य लाभ होगा।
५) लहसुन की कलियां ५० ग्राम लें।सैंधा नमक,जीरा,हींग,पीपल,काली मिर्च व सौंठ २-२ ग्राम लेकर लहसुन की कलियों के साथ भली प्रकार पीस कर मिलालें। यह मिश्रण अरंड के तेल में भून कर शीशी में भर लें। आधा या एक चम्मच दवा पानी के साथ दिन में दो बार लेने से गठिया में आशातीत लाभ होता है।
६) हर सिंगार के ताजे पती ४-५ नग लें। पानी के साथ पीसले या पानी के साथ मिक्सर में चलालें। यह नुस्खा सुबह-शाम लें ३-४ सप्ताह में गठिया और वात रोग नियंत्रित होंगे। जरूर आजमाएं।
७) बथुआ के पत्ते का रस करीब ५० मिलि प्रतिदिन खाली पेट पीने से गठिया रोग में जबर्दस्त फ़ायदा होता है। अल सुबह या शाम को ४ बजे रस लेना चाहिये।जब तक बथुआ सब्जी मिले या २ माह तक उपचार लेना उचित है।रस लेने के आगे पीछे २ घंटे तक कुछ न खाएं। बथुआ के पत्ते काटकर आटे में गूंथकर चपाती बनाकर खाना भी हितकारी उपाय है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा कई मामलों मे फ़लप्रद सिद्ध हो चुकी है।

८) पंचामृत लोह गुगल,रसोनादि गुगल,रास्नाशल्लकी वटी,तीनों एक-एक गोली सुबह और रात को सोते वक्त दूध के साथ २-३ माह तक लेने से गठिया में बहुत फ़ायदा होता है।

९) उक्त नुस्खे के साथ अश्वगंधारिष्ट ,महारास्नादि काढा और दशमूलारिष्टा २-२ चम्मच मिलाकर दोनों वक्त भोजन के बाद लेना हितकर है।

१०) चिकित्सा वैज्ञानिकों का मत है कि गठिया रोग में हरी साग सब्जी का प्रचुरता से इस्तेमाल करना बेहद फ़ायदेमंद रहता है। पत्तेदार सब्जियो का रस भी अति उपयोगी रहता है।

11) भाप से स्नान करने और जेतुन के तैल से मालिश करने से गठिया में अपेक्षित लाभ होता है।

१२) रोगी को कब्ज होने पर लक्षण उग्र हो जाते हैं। इसके लिये गुन गुने जल का एनिमा देकर पेट साफ़ रखना आवश्यक है।

१३) अरण्डी के तैल से मालिश करने से भी गठिया का दर्द और सूजन कम होती है।

१४) सूखे अदरक (सौंठ) का पावडर १० से ३० ग्राम की मात्रा में नित्य सेवन करना गठिया में परम हितकारी है।

१५) चिकित्सा वैग्यानिकों का मत है कि गठिया रोगी को जिन्क,केल्शियम और विटामिन सी के सप्लीमेंट्स नियमित रूप से लेते रहना लाभकारी है।

१६) गठिया रोगी के लिये अधिक परिश्रम करना या अधिक बैठे रहना दोनों ही नुकसान कारक होते हैं। अधिक परिश्रम से अस्थिबंधनो को क्षति होती है जबकि अधिक गतिहीनता से जोडों में अकडन पैदा होती
१७) एक लिटर पानी तपेली या भगोनी में आंच पर रखें। इस पर तार वाली जाली रख दें। एक कपडे की चार तह करें और पानी मे गीला करके निचोड लें । ऐसे दो कपडे रखने चाहिये। अब एक कपडे को तपेली से निकलती हुई भाप पर रखें। गरम हो जाने पर यह कपडा दर्द करने वाले जोड पर ३-४ मिनिट रखना चाहिये। इस दौरान तपेली पर रखा दूसरा कपडा गरम हो चुका होगा। एक को हटाकर दूसरा लगाते रहें। यह विधान रोजाना १५-२० मिनिट करते रहने से जोडों का दर्द आहिस्ता आहिस्ता समाप्त हो जाता है। बहुत कारगर उपाय है।

इसके अलावा असाध्य स्थिती में मैने एक मृत्युंजय चिकित्सा तैयार की है जो कि आधुनिक दौर में अत्यंत कारगर है इस चिकित्सा में दवाओं का योगदान ज्यादा नही है।

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